सोमवार, 13 जून 2011

शाम, तन्हाई और कुछ ख्याल............




है तूफ़ान सा सीने में क्यों
सासें मेरी क्यों जल रही
धड़कन पड़ी चुपचाप क्यों
किसकी कमी है ख़ल रही

है क्या चुभन कैसी जलन
क्या ढूंढ़ता आवारा मन
बंजर लगे सब कुछ मुझे
आख़िर कहाँ मेरा चमन

एक जंग सी अन्दर छिड़ी
जाऊँ किधर सूझे नहीं
मंजिले धुधली पड़ी
और रास्तों का पता नहीं

है इश्क़ की मजबूरियाँ ,
और बीच की ये दूरियाँ
अब कुछ सहा जाता नहीं ,
मुझसे रहा जाता नहीं

क्यों ज़िन्दगी इतनी खले
और हल नहीं कुछ पास है
मिली धरती मुझे
पास अब ............आकाश है

खुदा! क्यों छीन लेता
है नहीं सांसें मेरी
हर पल मुझे क्यों मारता
मर्जी बता .......... मुझको तेरी ..........

मुझको बता .........मेरे खुदा ...........
मेरे खुदा ....मुझको बता............
अब तो बता मुझको बता
कुछ तो बता मेरे खुदा ..............

5 टिप्‍पणियां:

Ravi R K ने कहा…

बहुत अच्छी रचना है...एकदम लय में है ।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 13/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

prerna argal ने कहा…

तन्हाई पर लिखी बहुत सुंदर और अनोखी रचना बहुत बहुत बधाई आपको /




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www.prernaargal.blogspot.com

विभूति" ने कहा…

मुझको बता .........मेरे खुदा ...........
मेरे खुदा ....मुझको बता............
अब तो बता मुझको बता
कुछ तो बता मेरे खुदा .......bhaut hi sundar....

manish ने कहा…

aap sabo ka dhanyavaad