मंगलवार, 29 जनवरी 2008

क्या तुम् मेरे जैसी हो........!!!!!



क्या तुम् मेरे जैसी हो
या यू ही मुझको लगता है

जो कुछ भी तुम् कहती हो
भाव है उनमें मेरे भी
कि जिस पथ पर चलती हो तुम्
पाँव हैं उनपर मेरे भी

कि तुमसे मिलकर जाने क्यू
उन्माद सा मुझपे छाया है
कुछ बरस थे या कुछ युग बीते
अब जा कर कोई भाया है

ये सपना है या सच है जाने
लगती तुम् सपने जैसी हो
क्या तुम् मेरे जैसी हो
या यू ही मुझको लगता है.........

इस जटिल कुटिल जीवन में मुझको
तुम् कैसे मिल सकती हो
मैं सोच रहा हू ये कब से कि
क्या तुम् सब सच कहती हो

मैं हँसता था कुछ लोगो पर
जाने वो क्यू कर रोते हैं
वो कहते थे मुझको हस कर
प्रेमी ऐसे ही होते हैं
मैं सोचा करता था कि क्या
मैं भी दीवाना हो जाऊंगा
ऐसा पागल तो नही कि मैं
सुध बुध भी खो जाऊंगा

पर जाने क्यू अब लगता है
वो तो सब सच ही कहते थे
अब लगता है दूजे के आसू
उनकी आँखों से बहते थे

पता नही कुछ ......क्या बोलू मैं
क्या जाने तुम् कैसी हो....
क्या तुम् मेरे जैसी हो
या यू ही मुझको लगता है..........!!!!

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