गुरुवार, 6 मार्च 2008

मुझको ऐ जान मेरी इतनी इजाजत दे दो ...........


अपने अश्को से आज तेरा दामन भीगा दूँ
मुझको ऐ जान मेरी इतनी इजाज़त दे दो
ना जाने किन जमानो से मैं सोया नही हूँ
अपने आँचल में छिपा लो , मुझको सुला दो

मैं अपनी तक़दीर से लड़ता अकेला थक गया हूँ
साथ मेरे आ के मुझको अब सहारा दे दो
न जाने कितनी सादियो से मैं रोया नही हूँ
ये आंसू सूख न जाए अब पलको पे कहीं


मैं तन्हाई यो से आज कल डरता बहुत हूँ
तुम् मेरा हाथ थाम के फिर चलना सिखा दो
की अब रास्तों मे मेरे अँधेरा ही अँधेरा
तुम् अपने प्रेम के दीपक से रौशनी सजा दो


मैं पतझर के काँटों से उलझा हुआ हूँ
दो फूल अब मेरे दामन में गिरा दो
मैं अपनी ज़िंदगी अब सौप्ता हूँ हाथों मे तेरे
मार दो मुझको कि या वापस जिला दो

अपने अश्को से आज तेरा दामन भीगा दूँ
मुझको जान मेरी इतनी इजाज़त दे दो
ना जाने किन जमानो से मैं सोया नही हूँ
अपने आँचल में छिपा लो , मुझको सुला दो

3 टिप्‍पणियां:

Rakesh ने कहा…

bhadhiya ,,,,, mast ,,,,,,, super,,
ossssaaammmmmm........

Vikash ने कहा…

अच्छे भाव हैं. शब्दों के थोड़े हेर-फेर से कविता की लय और अच्छी हो सकती थी. (आशा है कि मेरी आलोचना को नकारात्मक रूप में ना लिया जायेगा)

आलोक कुमार ने कहा…

aapki kavitaayen bahut achchhii hain...khaaskar is samvednaatmak kavita ko maine vaani ke blog par daal diya.
http://iitbkivaani.wordpress.com/