जिंदगी की राह-ए-गुजर में यार मेरा था पुराना
आईने ने भी कर दिया मुझसे अब तो ये बहाना
दिल दिया है जिसको उसे ये दर्द भी दे आइये
दौर-ए-जहाँ के ज़ख्म अब मुझको नहीं दिखलाइये
लाख कोशिश कर चुका, आईने को मैं भाता नहीं
बेरहम मेरा सनम है, आईना समझ पाता नहीं
आज जब रुखसत हुए हैं तो इतना तो कर ही दीजिए
कुछ रह गया है आपकी आँखों में लौटा दीजिए
आईने में आजकल कुछ भी तो दिखता है नहीं
तस्वीर मेरी आपकी आँखों से वापस कीजिए
इस जहाँ के नश्तरों को झेलना यूँ मुमकिन नहीं
गर दवा देंगे नहीं तो जहर ही दे दीजिए
कुछ रह गया है आपकी आँखों में लौटा दीजिए..!!!!!!!!!
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