गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

कि तुम बिन ज़िन्दगी ज़ाया ...!!!!!!!!!!!!

किसी की मुस्कराहट पे दिल यूँ न मचला था कभी
ठहरी नही मेरी नजर देख रखें हैं चेहरे कई
न जानूँ बात क्या तुझमें न जानूँ कौन सा जादू
जो तू सामने मेरे तो मैं बेबाक सा क्यों हूँ

क्या मासूम हैं रुखसार क्या तीखी निगाहें हैं
कमल की पंखुडी छू ली कि छू ली तेरी बाहें हैं
खुदा भी डर रहा था कि नजर न लग जाए तुझको
तभी तो चाँद से चेहरे पे ये काले तिल सजाये हैं

रोका बहुत दिल को मगर ये रुक नही पाया
हर पहरे को तोड़ता हुआ तुझ तक चला आया
बहुत समझा चुका इसको मगर ये कहता है मुझको
अगर तुम मिल नही पाई तो है ये ज़िन्दगी ज़ाया

4 टिप्‍पणियां:

Mayank ने कहा…

hey... m' guessing about this creature, about which you've written this poem; and I am damn sure that I am right.. :P

I didn't know you were into her!

Anyway, nice Kavita...

manish ने कहा…

sorry dude I don't think u even know her.....:P

Mayank ने कहा…

are kanchan aur kamini sab ek jaise hote hai...if you know one, you know all... :P

so in that way, even if I don't know her, still I know her somewhere deep within my heart, can you feel it... :D :P

manish ने कहा…

hehehe thanx :)