सोमवार, 18 फ़रवरी 2008
मैं अभी हारा नही हू
आज फिर ठोकर लगी
मैं गिरा
मुकद्दर हँसा
वो सोचता है जीत ली
बाजी है उसने आज मुझसे
पर मैं अभी हारा नही हू
वो जीत कर हारा हुआ सा खीज़ता
गुस्से में दांतों को कभी
मुट्ठी को अपनी भींचता
और मैं हँसता हुआ
फिर जोश में आगे बढ़ा
उसने कहा तू हार अपनी
मानता है क्यों नहीं
मैंने कहा तू भले ले
जीत इसको मान अपनी
पर मैं अभी हारा नही हूँ
ये हार मेरी हो नहीं सकती
ये तो है बस
एक पत्थर रस्ते का
ठोकर लगी मुझको जरा
पर मुझे आया समझ
इस रास्ते पर ठीक से चलना
अभी कई नए रास्तों पर
नए पत्थर ,
नई ठोकर
मिलती रहेंगी
और मेरी धमनियों
में भटकते कुछ खून को
लावा बना दिया करेंगी
इसलिए इन ठोकरों पर
खुश हूँ मैं
नई कुछ सीख पाकर
और फिर लड़ने को आगे
कुछ नई तरकीब पाकर
मैं लडूगा
आगे बढूँगा
क्योंकि स्वप्न मेरा है अधूरा
प्राण भी बाकि है मुझमें
और मैं हारा नहीं हूँ
मैं अभी हारा नहीं हूँ ..!!!!
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1 टिप्पणी:
ye wali superb hai...keep on grt work dude....
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