रविवार, 26 अप्रैल 2009

माना की है मेरी खता....!!!!!!!!!!!

माना कि है मेरी खता
लेकिन तुझे है क्या पता


कि जब कोई नजर तुझे
ताकती हैं प्यार से
दिल पर मेरे गिरते है
लाल दहकते अंगार से
और मेरी साँस जैसे
रोक देता कोई है
देख मेरी आँखों को
रात भर ये रोई हैं

माफ़ कर जो हो सके
लेकिन बता मैं क्या करूँ
तुझको न कोई छीन ले
दिन रात मैं डरता रहूँ
जी चाहता है आज मेरा
तुझमें समां सोता रहूँ
गोद में सर रख के तेरे
देर तक रोता रहूँ

गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

उसने देखा भी मुझको और पहचाना भी नही !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

मैं जिनकी याद में दुनिया भुलाये बैठा था
ख़ुद को अंधेरो में छुपाये बैठा था
वो जो मुझको कभी जान अपना कहती थी
वो जो प्यार में मेरे ही गुम सी रहती थी

मैंने जिसके लिए ज़माने से बगावत कर दी
ज़माने के सारे उसूलों की खिलाफत कर दी
जो साँस थी मेरी धड़कनों का नगमा थी
जो मेरे जीस्त का मकसद ,जो मेरी दुनिया थी

मेरे दिल में बसा था एक बस वो अक्श जिसका
मेरी आंखों में छपा था नैन नक्श जिसका
मैं जिसकी गलियों में खुदको तबाह कर बैठा
सभी को छोड़ कर बस उसकी चाह कर बैठा

उसको मैंने आज रास्ते पर आते देखा
मेरी तरफ़ कदमो को बढ़ते देखा
वो मेरे पास से गुजरी तो फिर हसरत जागी
उसकी नजरों में ख़ुद को देखने की चाहत जागी


वो फिर पास से गुजरी और नजरें भी मिली
मेरी वफाओ से सींची कलि सब खिलने लगी
मेरी वफ़ा की मजार लाँघ वो आगे निकल गई
उसने देखा भी मुझको और पहचाना भी नहीं
उसने देखा भी मुझको और पहचाना भी नहीं...........!!!!!!!!!!!!!!!!

आज ज़रा रोने दो मुझको ....!!!!!!!!

आज भरो बाहों में मुझको
आज जरा सोने दो मुझको
बर्फ बहुत जम गया है भीतर
आज जरा रोने दो मुझको

सब कुछ तो खोकर बैठा हूँ
ख़ुद को खो लेने दो मुझको
सिसक सिसक पड़ा रहने दो
घर के किसी कोने में मुझको

नींदों में सपनो में अपने
कुछ देर तो खुश होने दो मुझको
आज भरो बाहों में मुझको
आज जरा सोने दो मुझको
बर्फ बहुत जम गया है भीतर
आज जरा रोने दो मुझको

सखी ये दुर्लभ गान तुम्हारा

ठीक भोर में जब गंगा के
जल में लाली घुलती जाए
और दूर विहगों की टोली
आसमान में पंख फैलाये
गीत मधुर जीवन के गाए
कोई भींगा सा हाथ तभी
मन्दिर की घंटी छू जाए

या गोधूली हो , यमुना तट हो
सूरज पानी पर उतराए
और कृष्ण की बंसी सुनकर
राधा पायल छनकाती आए

कुछ वैसा ही लहर उठा है
जाने ये सुर कहाँ सजा है ?

मैंने पूछा इस वायु से
री पगली तू क्यों इतराई
किसके उच्छ्वास की लहरें
मेरे कानो तक ले आई

वो हँसती आगे चलती थी
पीछे जब मैं उसके आया
देखा यहाँ तुम्ही बैठी हो
अच्छा क्या तुमने गाया ?

सखी आज तुम गाती जाओ
खिल खिल उठा है प्राण हमारा
मंत्रमुग्ध पूरी धरती है
सुनकर दुर्लभ गान तुम्हारा

कि तुम बिन ज़िन्दगी ज़ाया ...!!!!!!!!!!!!

किसी की मुस्कराहट पे दिल यूँ न मचला था कभी
ठहरी नही मेरी नजर देख रखें हैं चेहरे कई
न जानूँ बात क्या तुझमें न जानूँ कौन सा जादू
जो तू सामने मेरे तो मैं बेबाक सा क्यों हूँ

क्या मासूम हैं रुखसार क्या तीखी निगाहें हैं
कमल की पंखुडी छू ली कि छू ली तेरी बाहें हैं
खुदा भी डर रहा था कि नजर न लग जाए तुझको
तभी तो चाँद से चेहरे पे ये काले तिल सजाये हैं

रोका बहुत दिल को मगर ये रुक नही पाया
हर पहरे को तोड़ता हुआ तुझ तक चला आया
बहुत समझा चुका इसको मगर ये कहता है मुझको
अगर तुम मिल नही पाई तो है ये ज़िन्दगी ज़ाया

बुधवार, 19 नवंबर 2008

कुछ रह गया है आपकी आंखों में लौटा दीजिये ...........!!!!!!!!!!


जिंदगी की राह-ए-गुजर में यार मेरा था पुराना
आईने ने भी कर दिया मुझसे अब तो ये बहाना

दिल दिया है जिसको उसे ये दर्द भी दे आइये
दौर-ए-जहाँ के ज़ख्म अब मुझको नहीं दिखलाइये

लाख कोशिश कर चुका, आईने को मैं भाता नहीं
बेरहम मेरा सनम है, आईना समझ पाता नहीं

आज जब रुखसत हुए हैं तो इतना तो कर ही दीजिए
कुछ रह गया है आपकी आँखों में लौटा दीजिए

आईने में आजकल कुछ भी तो दिखता है नहीं
तस्वीर मेरी आपकी आँखों से वापस कीजिए

इस जहाँ के नश्तरों को झेलना यूँ मुमकिन नहीं
गर दवा देंगे नहीं तो जहर ही दे दीजिए

कुछ रह गया है आपकी आँखों में लौटा दीजिए..!!!!!!!!!

मेरे हमदम मुझे तू माफ़ कर दे

मेरे हमदम मुझे तू माफ़ करदे दूर हूँ तुझसे
मेरी जिंदगी को घेरे हैं बदल बहुत काले

कभी एक ख्वाब सा था कुछ कई रंगीन बातें थी
समय के थापर खा जाने कहाँ गिरा डालें

मैं हूँ पत्ता एक सूखा सा गिरा हूँ पेड़ से अपने
न जाने कब कोई आकर के अब मुझको जला डाले

कि देख मौत मेरी वो खड़ी अब मांगती मुझको
तू चाहे रोक ले मुझको जो चाहे छोड़ भी डाले

जहाँ भी जा रहा हूँ बंद हर दरवाजा है मुझपर
न जाने कौन सी चाभी से खुलते ये सभी ताले

मेरा माजी, मेरा किस्सा न कोई पूछना मुझसे
भरा है दर्द से इतना , कि न धरती डूबा डाले

मैं सदमे में हूँ थोड़ा मुझे खामोश रहने दे
मेरी आवाज आज न कहीं तुझको रुला डाले